सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं दिशाएं
आवास या कार्यालय का निर्माण करते समय दिशाओं का सदैव ध्यान रखना चाहिए। सहीं दिशाओं का निर्धारण नहीं होने के कारण हमें नकारात्मक ऊर्जा मिलती रहेगी और कोई भी काम व्यवस्थित रूप से संपन्न नहीं हो सकेगा। किसी भी का निर्माण करने से पूर्व वास्तु शास्त्र की सहायता से हम अधिक ऊर्जावान बन सकते हैं। यह सकारात्मक ऊर्जा कर्म के साथ ही भाग्योदय में भी सहायक होती हैं। जानें दिशाओं के विषय में कुछ तथ्य-
उत्तर
उत्तर दिशा से चुम्बकीय तरंगों का भवन में प्रवेश होता हैं। चुम्बकीय तरंगे मानव शरीर में बहने वाले रक्त संचार एवं स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। अतः स्वास्थ्य की दृष्टि से इस दिशा का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। स्वास्थ्रू के साथ ही यह धन को भी प्रभावित करती हैं। इस दिशा में निर्माण में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक हैं मसलन उत्तर दिशा में भूमि तुलनात्मक रूप से नीची होना चाहिए तथा बालकनी का निर्माण भी इसी दिशा में करना चाहिए। बरामदा, पोर्टिको और वाश बेसिन आदि इसी दिशा में होना चाहिए।
ईशान
उत्तर-पूर्व दिशा में देवताओं का निवास होने के कारण यह दिशा दो प्रमुख ऊजाओं का समागम हैं। उत्तर दिशा और पूर्व दिशा दोनों इसी स्थान पर मिलती हैं। अत इस दिशा में चुम्बकीय तरंगों के साथ-साथ सौर ऊर्जा भी मिलती हैं। इसलिए इसे देवताओं का स्थान अथवा ईशान दिशा कहते हैं। इस दिशा में सबसे अधिक खुला स्थान होना चाहिए। नलकूप एवं स्वीमिंग पुल भी इसी दिशा में निर्मित कराना चाहिए। घर का मुख्य द्वार इसी दिशा में शुभकारी होता हैं।
पूर्व
पूर्व दिशा ऐश्वर्य व ख्याति के साथ सौर ऊर्जा प्रदान करती हैं। अतःभवन निर्माण में इस दिशा में अधिक से अधिक खुला स्थान रखना चाहिए। इस दिशा में भूमि नीची होना चाहिए। दरवाजे और खिडकियां भी पूर्व दिशा में बनाना उपयुक्त रहता हैं। पोर्टिको भी पूर्व दिया में बनाया जा सकता हैं। बरामदा, बालकनी और वाशबेसिन आदि इसी दिशा में रखना चाहिए। बच्चे भी इसी दिशा में मुख करके अध्ययन करें तो अच्छे अंक अर्जित कर सकते हैं।
वायब्य
उत्तर-पश्चिम दिशा में भोजन कक्ष बनाएं यह दिशा वायु का स्थान हैं। अतः भवन निर्माण में गोशाला, बेडरूम और गैरेज इसी दिशा में बनाना हितकर होता है। सेवक कक्ष भी इसी दिशा में बनाना चाहिए।
पश्चिम
पश्चिम दिशा में टायलेट बनाएं यह दिशा सौर ऊर्जा की विपरित दिशा हैं अतः इसे अधिक से अधिक बंद रखना चाहिए। ओवर हेड टेंक इसी दिशा में बनाना चाहिए। भोजन कक्ष, दुछत्ती, टाइलेट आदि भी इसी दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में भवन और भूमि तुलनात्मक रूप से ऊॅंची होना चाहिए।
नेतृीत्य
दक्षिण-पश्चिम दिशा में मुखिया का कक्ष सबसे अच्छा वास्तु नियमों में इस दिशा को राक्षस अथवा नैऋत्व दिशा के नाम से संबोधित किया गया हैं। परिवार के मुखिया का कक्ष इसी दिशा में उपयुक्त होता है। परिवार के मुखिया का कक्ष इसी दिशा में होना चाहिए। सीढ़ियों का निर्माण भी इसी दिशा में होना चाहिएै इस दिशा में खुलापन जैसे खिड़की, दरवाजे आदि बिल्कुल न निर्मित करें। किसी भी प्रकार का गड्ढा, शौचालय अथवा नलकूप का इस दिशा में वास्तु के अनुसार वर्जित हैं।
आग्नेय
दक्षिण-पूर्व दिशा में किचिन, सेप्टिक टेंक बनाना उपयुक्त होता है। यह दिशा अग्नि प्रधान होती हैं अतः इस दिशा में अग्नि से संबंधित कार्य जैसे कि किचिन, ट्रांसफार्मर, जनरेटर ब्वायलर आदि इसी दिशा में होना चाहिए। सेप्टिक टेंक भी इसी दिशा में बनाना ठीक रहता हैं।
दक्षिण
दक्षिण दिन यम की दिशा है यहां धन रखना उत्तम होता हैं। यम का आशय मृत्यु से होता है। इसलिए इस दिशा में खुलापन, किसी भी प्रकार के गड्ढे और शैचालय आदि किसी भी स्थिति में निर्मित करें। भवन भी इस दिशा में सबसे ऊंचा होना चाहिए। फैक्ट्री में मशीन इसी दिशा में लगाना चाहिए। ऊंचे पेड़ भी इसी दिशा में लगाने चाहिए। इस दिशा में धन रखने से असीम वृद्धि होती हैं।
कोई भी जातक इन दिशाओं के अनुसार कार्यालय, आवास, दुकान फैक्ट्री का निर्माण कर धन-धान्य से परिपूर्ण हो सकता हैं।