शुक्र से बनने वाले योग-
जिसके विश्लेषण से यह पता चलता है कि ग्रह के प्रभाव के अनुरूप वातावरण का निर्माण होता है कि इन प्रतियोगिताओं में खुद को आजमाने वाली युवतियों पर शुक्र ग्रह का ही प्रभाव होता है। शुक्र का संबंध सांसारिक सुखों से है। यह रास, रंग, भोग, ऐश्वर्य, आकर्षण तथा लगाव का कारक है। शुक्र दैत्यों का गुरु है और कार्य सिद्धि के लिए साम-दाम-दंड-भेद के प्रयोग से भी नहीं चूकते।सौंदर्य में शुक्र की सहायता के बिना सफलता असंभव है। जन्म कुंडली में शुक्र का प्रभाव जन्म लग्न पर होने से व्यक्ति आकर्षक, सौंदर्य, घुंघराले बालों वाला, स्वच्छता प्रिय, रंग-बिरंगे वस्त्र धारण करने का शौकीन होता है। आजकल यह फैशन स्त्रियों में ज्यादातर देखा जाता है यह संभवत शीत प्रधान शुक्र चंद्र के प्रभाव क्षेत्रों की देन है महिला वर्ग का चर्म परिधान शुक्र चंद्र और मंगल की परतों से बना है अर्थात कोमलता तेज रक्तिमा एवं सौंदर्य का सम्मिश्रण ही उसकी विशेष आकर्षण शक्ति होती है।
शुक्र ग्रह से प्रभावित युवतियां फ्री प्रतियोगिता के अंतिम राउंड तक पहुंच पाती हैं। कुछ ग्रह ऐसे भी होते हैं जो कुछ दूर तक तो युवतियों का सहयोग करते हैं लेकिन जैसे ही दूसरे प्रतियोगियों के ग्रह भारी पड़ते हैं तो कमजोर ग्रह वाली युवतियां पिछड़ने लगती हैं। प्रतियोगिताओं के निर्णायक भी शनि मंगल गुरु जैसे ग्रहों से प्रभावित होते हैं।सौंदर्यशास्त्र का विधान पूरी तरह से ज्योतिष कर्म और चिकित्सकों पैसे जैसा ही है। अगर किसी निर्णायक को सौंदर्य ज्ञान नहीं हो तो वह निर्णय भी नहीं कर पाएगा ऐसे में निर्णायक शुक्र से प्रभावित तो होते हैं लेकिन उन पर गुरु चंद्र का भी प्रभाव होता है। जन्म कुंडली में तृतीय एवं एकादश भाव स्त्री का वक्ष स्थल माना जाता है। गुरु शुक्र इन भावों में बैठे हो या यह दोनों ग्रह इन्हें देख रहे हो साथ में बलि भी हो तो यह भाव सुंदर, पुष्ट एवं आकर्षक होता है और आंतरिक सौंदर्य को लग्न के अनुसार परिधान सुशोभित करते हैं। पंचम एवं नवम भाव कटी प्रदेश से नीचे का होता है जो स्त्री को शनि गुरु प्रधान कृषता तथा स्थूलता सुशोभित करती है। अभिनय एवं संगीत में दक्षता प्रदान करने वाला ग्रह शुक्र है। शुक्र यदि बली होकर नवम ,दशम, एकादश भाव अथवा लग्न से संबंध करें तो जातक सौंदर्य के क्षेत्र में धनमान और यश प्राप्त करता है। लग्न जातक का रूप, रंग, स्वभाव एवं व्यक्तित्व को दर्शाता है चतुर्थ भाव या चंद्रमा जनता का प्रतिनिधित्व करता है। पंचम भाव वृद्धि, रुचि एवं मित्र बनाने की क्षमता को दर्शाता है।तुला राशि का शुभ ग्रह शुक्र मंच कलाकार या जनता के सम्मुख अपनी कला का प्रदर्शन कर धन एवं यस योग देता है। मीन राशि के शुक्र कलात्मक प्रतिभा को पुष्ट करता है। शुक्र ग्रह से बनने वाले योग जैसे राजयोग, लक्ष्मी योग, सरस्वती योग, श्रीनाथ योग, योग संयोग और माल योग ऐसे कई विभिन्न योग बनते हैं।*
राजयोग–
1- यदि शुक्र अश्विनी नक्षत्र में स्थित होकर लग्न में स्थित हो तथा उन पर 3 ग्रहों की दृष्टि हो तो ऐसा व्यक्ति प्रबल राजा होता है जो अपने शत्रुओं को जीतता है।
2- यदि लग्नेश बलवान होकर शुक्र के साथ द्वितीय स्थान में स्थित हो तथा द्वितीय भाव में स्थित राशि का राशिश, लग्नेश या शुक्र की शत्रु राशियां नीच राशि ना हो तो ऐसा जातक राजा होता है।
3- यदि जन्म के समय बृहस्पति और चंद्रमा केंद्र में हो और उसे शुक्र देखता हो एवं कोई ग्रह नीच राशि में ना हो तो ऐसा जातक राजा होता है।
4- शुक्र बली हो और चतुर्थ भाव से उसका किसी भी प्रकार का संबंध हो तो वह जातक धनवान होता है।
5- यदि चतुर्थ भाव से चंद्रमा, बुध और शुक्र का संबंध हो और इन तीनों ग्रहों का लग्न या लग्नेश से भी संबंध हो जाए तो महाराजा योग का निर्माण होता है ऐसा व्यक्ति अपार संपत्ति का स्वामी होता है।
6- बली शुक्र लग्न से एकादश या द्वादश में स्थित हो तो राजयोग होता है।
लक्ष्मी योग-शुक्र यदि भाग्य स्थान का स्वामी हो या फिर अपने ही भाव में या उच्च राशि में स्थित होकर लग्न से केंद्र या त्रिकोण में हो तो लक्ष्मी योग बनता है।
सरस्वती योग- शुक्र यदि बुध,गुरु व लग्न से केंद्र या त्रिकोण या द्वितीय स्थान में हो और गुरु स्वराशि,मित्र राशि या उच्च राशि में बलवान हो तो सरस्वती योग बनता है।
श्रीनाथ योग-यदि बुध, शुक्र और भाग्य स्थान के स्वामी, यह तीनों उच्च राशि, स्वराशि या मित्र राशि में स्थित होकर, लगना से केंद्र या त्रिकोण में हो तो श्रीनाथ योग बनता है।
योग संयोग–
1- तृतीय भाव सृजनात्मक योग्यता का सूचक है शुक्र का बली होना एवं लगने से संबंध सुंदरता में निपुणता लाता है। कुशल अभिनय के लिए चंद्रमा एवं संवाद अदायगी के लिए बुध बली हो तथा शुभ स्थानों में चंद्र बुध का होना अभिनय संगीत एवं नृत्य आदि में सफलता दिलाता है।
2-जन्म लग्न,चंद्र लग्न एवं सूर्य लग्न से दशम भाव पर शुक्र का प्रभाव सफलता का योग बनाता है। बुध एवं शुक्र का बली होकर शुभ स्थानों में (विशेषकर लग्न, पंचम, दशम या एकादश) भाव में संबंध सौंदर्य क्षेत्र में सफलता देता है।
3- चंद्र कुंडली में लग्नेश, धनेश की युति लाभ स्थान में धन की वृद्धि का संकेत देती है साथ ही शुक्र वा बुध का दशम व दशमेश से संबंध जातक को भाग्य प्रबल प्रदान कर सफलता एवं प्रसिद्धि देता है।
4-चंद्र, शुक्र एवं बुध का संबंध चतुर्थ भाव, चतुर्थेश, धन भाव व धनेश, पंचम भाव व पंचमेश, नवम भाव व नवमेश से होने पर सफलता के योग बनते हैं।
5- पंच महापुरुष योग ओं के अंतर्गत शश योग (उच्च का शनि केंद्र में) एवं मालव्य योग (उच्च राशि व स्वराशि का केंद्र में) एवं लग्नेश का स्वराशि उच्च राशि का होना।
माला योग-कुंडली में द्वितीय, नवम और एकादश भाव के स्वामी ग्रह अपने-अपने स्थान और शुक्र का संबंध होने से यह योग बनता है जो जातक के प्रसिद्धि के द्वार खोलता है यह माला योग होता है और आगे कुछ और तथ्य हैं। जोकि प्रत्येक ग्रह की युति से तथा प्रत्येक भाव से संबंध रखते हैं उन सभी का अलग अलग प्रभाव होता है।