You are currently viewing साधक को ध्यान करने से पूर्व इस स्तुति का पाठ करना चाहिए

साधक को ध्यान करने से पूर्व इस स्तुति का पाठ करना चाहिए

साधक को ध्यान करने से पूर्व इस स्तुति का पाठ करने से कुंडलिनी जाग्रत और उर्ध्व गमन होने में फायदा मिलता है । कुंडलिनी स्तोत्र और अनुवाद नीचे दिए गए हैं 

 श्री कुण्डलिनी स्तुति स्तोत्र;

ॐ जन्मोद्धारनिरीक्षणीहतरुणी

वेदादिबीजादिमां

नित्यं चेतसि भाव्यते भुवि कदा सद्वाक्य

सञ्चारिणी

मां पातु प्रियदासभावकपदं सङ्घातये श्रीधरे !

धात्रि ! त्वं स्वयमादि देववनितादीनातिदिनं पशुम्II1II

 

रक्ताभामृतचन्द्रिका लिपिमयी सर्पाकृतिनिर्द्

रिता

जाग्रत्कूर्मसमाश्रिता भगवती त्वं मां समालोकय

मांसो मांसोद्गन्धकुगन्धदोषजडितं वेदादि

कार्यान्वितम्

स्वल्पास्वामलचन्द्र कोटिकिरणै-नित्यं शरीरम् कुरु II2II

 

सिद्धार्थी निजदोष वित्स्थलगतिर्व्याजीयते

विद्यया

कुण्डल्याकुलमार्गमुक्तनगरी माया कुमार्गःश्रिया

यद्येवम् भजति प्रभातसमये मध्यान्हकालेSथवा

नित्यम् यः कुलकुण्डलीजपपदाम्भोजं स सिद्धो भवेत् II3II

 

वाय्वाकाशचतुर्दलेSतिविमले वाञ्छोफ़लोन्मूलके

नित्यम् सम्प्रति नित्त्यदेहघटिता साङ्केतिता

भाविता

विद्या कुण्डलमानिनी स्वजननी माया क्रिया

भाव्यते

यैस्तैः सिद्धकुलोद्भवैः प्रणतिभिः सत्स्तोत्रकैः

शम्शुभिः II4II

 

वाताशन्कविमोहिनीति बलवच्छायापटोद्गामिनी

संसारादी महासुख प्रहरिणी ! तत्र स्थिता

योगिनी

सर्वग्रन्थिविभेदिनी स्वभुजगा सूक्ष्मातिसूक्ष्मा

परा

ब्रह्मज्ञानविनोदिनी कुलकुटीराघातनी भाव्यते II5II

 

वन्दे श्रीकुलकुण्डलीं त्रिवलिभिः साङ्गैः

स्वयंभूप्रियां

प्रावेष्ट्याम्बर चित्तमध्यचपला बालाबलानिष्कलां

या देवी परिभाति वेदवदना सम्भावनी तापिनी

इष्टानाम् शिरसि स्वयम्भुवनिता सम्भावयामि

क्रियाम् II6II

 

वाणी कोटि मृदङ्गनाद मदना- निश्रेणिकोटिध्व

निः

प्राणेशी प्रियताममूलकमनोल्लासैकपूर्णानना

आषाढोद्भवमेघराजिजनित ध्वान्ताननास्थायिनी

माता सा परिपातु सूक्ष्मपथगे ! मां योगिनां

शङ्करी  II7II

 

त्वामाश्रित्त्य नरा व्रजन्ति सहसा

वैकुण्ठकैलासयोः

आनंदैक विलासिनीम् शशिशता नन्दाननां कारणम्

मातः श्रीकुलकुण्डली प्रियकले काली कलोद्दीपने !

तत्स्थानं प्रणमामि भद्रवनिते ! मामुद्धर त्वं पथे  II8II

 

कुण्डलीशक्तिमार्गस्थं स्तोत्राष्टकमहाफ़लम्

यः पठेत् प्रातरुत्थाय स योगी भवति धृवम्

क्षणादेव हि पाठेन कविनाथो भवेदिह

पवित्रौ कुण्डली योगी ब्रह्मलीनो भवेन्महान्

इति ते कथितं नाथ ! कुण्डलीकोमलं स्तवम्

एतत् स्तोत्र प्रसादेन देवेषु गुरुगीष्पतिः

सर्वे देवाः सिद्धियुता अस्याः स्तोत्रप्रसादतः

द्विपरार्धं चिरञ्जीवी ब्रह्मा सर्वसुरेश्वरः

इति श्री आदि शक्ती भैरवी विरचितम्

श्री कुण्डलिनी स्तुति स्तोत्रम् संपूर्णम् ॥ॐ ॥

 

(हिंदी में अनुवाद )

   मानव के जन्म से ही उसके उद्धार का निरीक्षण करने वाली,वेद शास्त्र के बीज की तरह आदि माँ की तरह हमेशा अन्तःकरण में प्रकाशमान रहने वाली,पृथ्वी पर सदा सुखः देने वाली,सर्वदा ग्यान में संचार करने वाली,कांति, तेज,शोभा धारण करनेवाली,स्वयं आदि देवता है सुंदरी, दीनों में अतिदीन पशु जैसी हमारी अवस्था है।कृपा करके हमारा रक्षण कीजिये।रक्तवर्ण कांति धारण करने वाली अमृतमय चांदनी की तरह तेजमान रहने वाली,सर्पाकृति निंद्रा अवस्था में होकर भी जागृत कछवे की तरह हमारी और है देवी आप प्यार से देखे।सर्व दोषों से युक्त इस नश्वर देह को कोटि कोटि निर्मल चन्द्रकिरणों से,वेदशास्त्र कार्यों से परिपूर्ण कीजिये।सिद्धि प्राप्त करने की अपेक्षा करने वाला साधक कुण्डलिनी के ग्यान से कुमार्ग से दूर रहकर दोषमुक्त जीवन आचरण करता है।ऐसा साधक सुबह,दोपहर या नित्य श्री कुण्डलिनी स्तुति स्तोत्र का श्रवण करता है वो सिद्ध पुरुष की उपाधि प्राप्त करता है।पृथ्वी,वायु,आकाश,अग्नि एवं जलतत्व में स्थित यह श्री कुण्डलिनी शक्ति अपवित्र इच्छाओं को नष्ट करती है।मानव में होने वाले मोहजाल को भी पूर्णतया नष्ट करती है।कुण्डलिनी शक्ति हमारी माँ है।आत्मसाक्षात्कारी कुल से जन्म लेने वाला साधक यह पवित्र श्लोक के पठन,श्रवण से उसके आत्मा को प्रकाशमान करता है।श्री कुण्डलिनी माता चैतन्यरूपी लहरियों का आवरण करके भक्तोंका उत्थान सुखकारक करती है।संसार के दुःखोंका नाश करके,ब्रम्हग्रंथि,विष्णुग्रंथि,रूद्र ग्रंथि,आदि ग्रंथि का भेद करती है।सूक्ष्म से अति सूक्ष्म ब्रम्हग्यान की चर्चा करने वाली कुण्डलिनी माँ स्वयम्भू प्रिय है यह मूलाधार में स्थित यह अबोध स्त्री है।माँ ने अनेक कलाये है।माँ वेदमुखी है।साधना करने वाले भक्तों पर उनकी कृपा दृष्टि रहती है।यह एक तपस्विनी है।सहस्त्रार में शोभावान दिखने वाले इस माँ का हम आदर करते है और उनको प्रणाम करते है।कोटि कोटि मृदंगनाद का दमन करने वाली कोटि कोटि ध्वनिओं को दूर करने वाली प्राणों की स्वामिनी जिसका मुखकमल पूर्ण चंद्रमा की तरह है।वह अनेक आंनदरूपी वनों को उल्लसित करती है।आषाढ़ से मेघगर्जना से निर्मित अग्यानरूपी अंधकार को दूर करती है।और सदैव स्थिर रहके सूक्ष्म मार्ग सुष्मुना द्वारा योगियोंका उत्थान करके उनका कल्याण करती है।श्री कुंडलिनी माँ हमारा रक्षण करती है।कुण्डलिनी माँ आपके आश्रय में आनेवाला साधक वैकुण्ठ जो श्री विष्णुजी का स्थान है और कैलाश जो श्री शंकर का स्थान है वह सहज जा सकता है।केवल आनंद में शोभावान दिखने वाली शत चंद्रमा की तेज की तरह सुदर है काली माँ आप ही सम्पूर्ण कलाओं को महासरस्वती के रूप में उल्लसित करती है।हम आपको प्रणाम करते है।है देवी श्री महालक्ष्मी हमारा उद्धार कीजिये। कुण्डलिनी के शक्ति मार्ग के 8 श्लोकों का यह स्तोत्र महाफल देने वाला है।जो प्रातः काल में यह स्तोत्रका पठन या श्रवण करता है वह निच्छित ही योगी बनता है और क्षण में कविश्रेष्ठ होता है।इस कुण्डलिनी योग से योगी महान पवित्र और ब्रम्हग्यानी होता है।

    श्री आदिशक्ति कहती है “यह कोमल कुण्डलिनी स्तुति स्तोत्र की व्याख्या मैंने आपको समझायी है।इस स्तोत्र की कृपा से ब्रस्पति सभी देवों के गुरु बन गये।सर्व देवीदेवताओं को सिद्धि प्राप्त हुई।इतना ही नही सभी देवों के ईश्वर दो प्ररार्ध नाम से चिरंजीव हो गए।इस प्रकार यह कुण्डलिनी स्तुति स्तोत्र सम्पूर्ण हुवा।

जय माँ

Leave a Reply