आप को आयुर्वेद के नियम से पते की बात बताने जा रही हूं
आयुर्वेद के हिसाब से भोजन संबंधित ६ – छे रस होते है
स्वाद मुँह में डाले हुए पदार्थों का रसना या जीभ के द्वारा जो अनुभव होता है, उसे रस कहते हैं ।
वैद्यक में मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त और कषाय ये छह रस माने गए है और इसकी उत्पत्ति भूमि, आकाश, वायु और अग्नि आदि के संयोग से जल में मानी गई है
Principles of Taste : Madhur Katu, Tikta, Kashaya, Lavan and Amla Rasa – Liveright
Taste is the sensation perceived in the mouth & throat on contact with the taste buds in the oral cavity. Taste plays a vital role in food science…
अब सब से पते की बात ये है छे के छे रस जरूरी होते है और उस से भी ज्यादा पते की बात ये होती है की अपने भोजन में उन रसो का इस्तेमाल भी उसी क्रम में करना होता है
यानी पहले मधुर,( मीठा)
फिर अम्ल, (खट्टा)
फिर लवण, (नमकीन )
फिर कटु, (चरपरा)
फिर तिक्त (तीखा)
और अंत में कषाय( तूरा)
पहले के जमाने में हम दावत में जाते थे तब इस को मद्देनजर रख कर कैसे परोसा जाता था ?
????पहले मिठाई –(बेसन के ला से लड्डू)– मीठा
????फिर — दाल – नींबू वाली — (खट्टा)– अम्ल
????फिर सब्जी — नमक वाली — लवण
फिर रोटी / पूरी चरचरा
????फिर फरसान और संभारा — तीखा -> तिक्त
????अंत में जीरा चावल और पापड़ — कषाय – तूरा
????छाछ और लस्सी में भी फुदीना और जीरू तथा संचल (दरियाई नमक)
तो ये सब क्रोनोलोजिकली भी वैदक का पूर्ण अनुसरण था और
इस लिए उस वक्त मेदास्विता कम थी
और आज आप सोचे की किस क्रम में हम खा रहे है ?
शरुआत ही मसाला पापड़ /स्टार्टर और सूप से
और अंत में डेजर्ट के नाम पर मिठाई , पेस्ट्री और बेकरी आइटम और आइसक्रीम ..बिलकुल ही उल्टे क्रम में..
अब कोई अचम्बा है क्या की भारत के लोग आयुर्वेद वैदक की शिक्षा से उल्टा करने से, पहले से ज्यादा मोटे और मेदस्वी हो रहे हैं ?
साभार :- Jungle Man Of India