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ज्योतिष चिकित्सा व आधुनिक विज्ञान सूर्य की किरणों से हड्डियों की 47 व्याधियों-विद्रूपताओं का निवारण किया जाता रहा है.

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान किस तरह ज्योतिष एवं प्राचीन धर्म ग्रंथों से नक़ल कर नित नये चिकित्सकीय अन्वेषण करता है, मैं इसका एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूँ. 

आधुनिक रसायन विज्ञान के अनुसार विटामिन D का रासायनिक सूत्र है-  C28H44O

इसका रासायनिक नाम है- Ergocalciferol

यह विटामिन D2 का नाम है.

विटामिन D3 का नाम Cholecalciferol है.

रासायनिक सूत्र को देखें , इसमें कार्बन तो है, लेकिन कैल्शियम नहीं. लेकिन पढ़ते हैं कैल्शिफेरोल. नाम से स्पष्ट है कि इसमें कैल्शियम का अयन अवश्य है. लेकिन यह आधुनिक विज्ञान है जिसे पूरी तरह नक़ल करने का भी ढंग नहीं है. इसके पीछे कारण यह है कि कार्बन, कैल्शियम और ओक्सीजन – तीनों का विलयन अयनांश 2 ही होता है. इसलिए जब कृत्रिम रूप से इसका निर्माण करेगें तो कोई दो ही लेना पड़ेगा और किसी एक को छोड़ना पड़ेगा. 

रासायनिक नियम के अनुसार यदि कैल्शियम का अयन लेते हैं तो यह कैल्शियम हाइड्रोक्साइड  अर्थात क्षारीय गुण (Alkalised) हो जायेगा. और Monosthensea नामक हड्डी के रोग में क्षारीय पदार्थ उद्रेवक अर्थात हानिकारक हो जाता है. अतः इसे कार्बोहाईद्राक्साइड बनाने के लिये C28H44O सूत्र का सहारा लेना पड़ता है. 

कहने का तात्पर्य यह है कि विटामिन डी का मुख्य अयन कैल्शियम ही होता है. यह कृत्रिम पदार्थों के अलावा सूर्य की रोशनी में यह सर्वाधिक एवं पूर्ण होता है. कृत्रिम रूप से बनाए गए कैल्शियम के यौगिक में #अविसोम नामक पदार्थ नहीं पाया जाता किन्तु सूर्य की रोशनी में यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. देखें माधवाचार्य कृत भिषग मार्त्तंड. 

सूर्य की रोशनी का एपोहाईमेन्थिक पदार्थों पर आक्षेप डाल कर इसके अयनों का वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि सूर्य कैल्शियम (सुधांशु ) का विशाल स्रोत है. और इससे हड्डियों के समस्त व्याधियों की चिकित्सा सफलता पूर्वक की जा सकती है. किन्तु #अविसोम का पता लगाना इनके सामर्थ्य के बाहर की चीज थी, है, और रहेगी भी. 

अब हम ज्योतिष को देखते हैं- 

#मन्दोSलसः कपिलदृक् कृशदीर्घगात्रः,

स्थूलद्विजः परुषरोमक चोSनिलात्मा.

स्नाव्यस्थ्यसृक् त्वगथ शुक्लवशे च मज्जा,

मंदार्कचन्द्रबुधशुक्रसुरेड्यभौमाः..–वृहज्जाताकम ग्रह स्वरुप श्लोक 1 

अर्थात सूर्य का आधिपत्य हड्डी पर होता है तथा उसकी विकृति आदि या संपोषण का कार्य सूर्य के द्वारा ही होता है. 

अब ज़रा रुद्रभट्ट को देखते हैं-

#अथ शब्दः कात्स्न्र्ये. यथोक्तानां कात्स्न्र्येनाधिपतयः पृथक् पृथक् आमीय धातु सार देहा इत्यर्थः.

अर्थात सूर्य की धातु सुधांशु का सावयव अनुवस्थ प्रयोग किया जाय तो अस्थिगत समस्त दूषण, विकार एवं अन्य जघन्य व्याधियां निर्मूल हो सकती हैं. 

सूर्य की किरण से निलय शीशा से द्रावण,

सुहागा से परिवाह ,

साग्रवर्ण (सोना का एक रूप) से एकपात 

अग्निवंश से भारुक 

सुधांशु से देवरस 

नृपलता से आनीर 

और बभ्मारुशैल (मृताक्ष पत्थर से निकला माणिक्य) से उपर्युक्त समस्त द्रव्य पाप्त होते हैं. 

इसीलिये कहा गया है कि —

#एते सप्त स्वयं स्थित्वा देहं दधति यन्नृणाम.

रसासृंगमांसमेदोSस्थि मज्जशुक्राणि धातवः.

आप स्वयं देख सकते हैं कि सूर्य की किरणों से विविध द्रव्य औषधि प्राप्त की जाती रही है और उससे हड्डियों की 47 व्याधियों-विद्रूपताओं का निवारण किया जाता रहा है. 

और आज कितने हजारों वर्ष बाद आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को यह पता चला है कि अस्थि विकृति सुधांशु  (Metapheredic Theasodyneal Compound) के विविध यौगिकों से ही संभव है. 

किन्तु पूरी तरह नक़ल करने में आधुनिक विज्ञान सक्षम नहीं हो पाया है. क्योंकि कुछ प्राकृतिक यौगिक ऐसे हैं जिनका भेदन और संतुलन कृत्रिम रूम से संभव नहीं है. यह हमारे प्राचीन ऋषि महर्षि और त्रिकाल दर्शी मुनिजन का सर्वोत्कृष्ट ज्ञान ही है जो इनका भेदन कर इन सूक्ष्म तथ्यों का पता लगा सका है.

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