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न केवल गृह स्वामी बल्कि मिस्त्री या आर्किटेक्ट के लिए भी संकट आ जाता है।

जब उत्तर की दीवार चुनने पर दीवार बाहर निकल जाती है तो न केवल गृह स्वामी बल्कि मिस्त्री या आर्किटेक्ट के लिए भी संकट आ जाता है। जब पूर्व की ओर की दीवार की चुनाई के समय उसका अगला भाग बाहर निकलता है तब गृह स्वामी के लिए राजा की ओर से भय उत्पन्न होता है, बल्कि राजदंड की सम्भावना बढ़ जाती है। जब पश्चिमी दीवार बाहर निकलती है तो धन हानि होती है एवं चोरों का भय होता है। जब दक्षिण की ओर दीवार चुनने पर बाहर चली जाती है तो गृह के निवासियों को बीमारियां हो जाती हैं एवं सरकार की ओर से दंड मिलता है। यह दंड पुलिस, सेल्स टैक्स, इनकम टैक्स या नगर निगम जैसी संस्थाओं के माध्यम से आ सकता है।

 

 

जब अग्निकोण का विस्तार इस तरह से हो कि चुनी हुई दीवारें बाहर की ओर निकली हुइ्र हों तो अग्निभय और गृह स्वामी की स्थिति पर असर पड़ता है। जब नैऋत्यकोण का अतिरिक्त विस्तार हो (समरांगण सूत्रधान के रचियता राजा भोजदेव बताते हैं कि केवल कर्ण चुनाई के समय बाहर निकले जबकि विस्तार का अर्थ वायव्य कोण से लेकर नैऋत्यकोण तक लगातार बाहर की ओर जाती हुई बाह्य भित्ति है।) अर्थात चुनाई के समय नैऋत्यकोण का कर्ण बाहर निकले तो वहां पर कलह, उपद्रव व भार्या के लिए जीवन संकट उत्पन्न होता है। जब वायव्यकोण का कर्ण चुनाई के समय बाहर निकल पड़े तो पुत्र, वाहन और नौकर के लिए संकट उत्पन्न होता है। जब ईशानकोण बाहर की ओर निकलता है तब गौ, बैल और गुरुओं का नाश होता है।

 

 

    जिस निर्माण कार्य की चुनी जा रही चारेां दीवारें बाहर निकल जाती हैं तो शास्त्रों में उसे मल्लिकाकृति की संज्ञा से पुकारा जाता है। ऐसे घर में व्यय बहुत अधिक होता है और आय नहीं होती। अंतत: इस कारण से गृह स्वामी घर छोड़कर भाग जाता है। चुना हुआ जो घर चारों तरफ से छोटा हो जाए, उसे संक्षेप कहते हैं और वह मध्य में विस्तृत होता है। शास्त्रों में इसे मृदंगाकृति संस्थान कहा जाता है और वहां हमेशा व्याधि उपस्थित रहती है। इसी भांति आदि से अंत तक विस्तृत और मध्य में संक्षिप्त जो घर होता है, वह मृदु-मध्य के नाम से कहा जाता है। (जैसे- मृदंग, वाद्य की बाहरी दीवारें बाहर की ओर निकली हुई होती है और उसका पेट फूला होता है, मृदु मध्य में इसका उल्टा होता है तथा इसकी कल्पना एक डुगडुगी की भांति की जा सकती है।) ऐसे घर में सदा भूख रहती है। विषम कर्ण हों, उन्नत कर्ण हों तो घर के लिए हमेशा नुकसान पहुंचाती है। अत: दीवार और कर्ण का ध्यान रखा जाना अत्यावश्यक है

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