वास्तु शास्त्र में सबसे पहले आप के जन्म स्थान से वास्तु स्थान भिन्न है तो, इस बात पर अधिक विचार होता है
वास्तु दिशा व स्थान
॥श्री गणेशाय नमः॥
यदि जन्म स्थान से वास्तु स्थान भिन्न है तो, वास्तु शास्त्र में सबसे पहले विचार इस बात का होता है कि जन्म स्थान से किस दिशा आप वास्तु निर्माण चाहते हैं? फिर दूसरी बात है वास्तु के स्थान (नगर, गाँव) का नाम क्या है ? इस दोनो बातों का अनुकूल होना अनिवार्य है।
वास्तु स्थान की दिशा व नाम के विचार के लिए ज्योतिष विद्या के वर्ग-चक्र का उपयोग किया जाता है। जन्म स्थान की दिशा से वास्तु स्थान की दिशा पाँचवीं हो तो अशुभ अन्यथा शुभ, इसी प्रकार नाम का विचार किया जाता है, पाँचवां वर्ग अशुभ होता है अन्य शुभ होते हैं।
पहले दिशाओं को जान लें-
दिशा-चक्र
दिशाओं के देवता व ग्रह इस प्रकार हैं-
दिशा देवता ग्रह
१. पूर्व इन्द्र सूर्य
२. आग्नेय अग्निदेव शुक्र
३. दक्षिण यम मंगल
४. नैर्ऋत्य निर्ऋति राहु-केतु
५. पश्चिम वरुण शनि
६. वायव्य वायुदेव चन्द्र
७. उत्तर कुबेर+चन्द्र बुध
८. ईशान शंकर बृहस्पति
जन्म स्थान से वास्तु स्थान की दिशा व नाम जानने के लिए ज्योतिष का वर्ग चक्र नीचे दिखाया जा रहा है-
अपना वर्ग विशेष शुभ, पाँचवां अशुभ तथा अन्य वर्ग सम होते हैं।
वर्ग-चक्र
(वर्गों में लिखे अंग इन वर्गों के ही हैं, आवश्यक स्थान पर चर्चा की जाएगी।)
जन्म और निवास का ग्राम एक ही हो तो नाम का विचार नहीं किया जाता। इसी प्रकार जन्म का स्थान तथा निवास का स्थान एक ही होने पर स्थान की दिशा का विचार भी नहीं करते। यदि जन्म और निवास का नगर एक ही हो मगर महौले दो हों तो महौले के नाम का विचार किया जाता है। जन्म और निवास के नगर भिन्न हों तो नगर के नाम का विचार होता है, महौल्ले के नाम का विचार नहीं करते।
अनिल नामक व्यक्ति किसी अन्य नगर/ग्राम से आकर दिल्ली में रह रहा है तो अशुभ है, क्योंकि “दिल्ली” तवर्ग (“अ” से पाँचवां वर्ग) है। वास्तु शुद्ध या शुभ होने पर भी यदि अनिल, ईश्वर, उमेश, ऐश्वर्या, ओंकार आदि अ वर्ग के परदेशी लोगों का निवास दिल्ली में हो तो अशुभ है। अ वर्ग के लोग यदि दिल्ली में ही जन्में है तो दिल्ली में रहने से दिल्ली के त वर्ग दोष नहीं लगेगा। लेकिन महौल्ला बदलना चाहते हैं तो दरियागंज उनके लिए अशुभ रहेगा। मगर उनका जन्म ही अगर दरियागंज में हुआ हो तो दरियागंज के त वर्ग के होने का दोष नहीं लगेगा।
इसी प्रकार अ वर्ग के व्यक्ति यदि अपने जन्म स्थान से पश्चिम में जाकर निवास करते हैं तो भी अशुभ है।
फिर से दोहराता हूँ-
१. विचारणीय वास्तु के नगर में न जन्मा जातक, नगर के नाम का विचार करेगा।
२. विचारणीय वास्तु के नगर में जन्मा जातक, नगर के नाम का विचार नहीं करेगा।
३. विचारणीय वास्तु के नगर में न जन्मा जातक, यदि महौल्ला बदल रहा है तो, विचारणीय वास्तु के महौल्ले के नाम का विचार करेगा।
४. जन्म और वास्तु का ग्राम एक ही हो तो वर्ग विचार नहीं करते, क्योंकि गाँव में महौल्ले नहीं होते।
५. यदि गाँव में शहर की तरह महौल्ले हों तो, (शहरों की तरह ही) महौल्ले बदलने पर वर्ग विचार होगा, अन्यथा नहीं।
६. जन्म स्थान से वास्तु स्थान की “दिशा” (वर्ग दिशा) का विचार ऊपर दी गई सभी स्थितियों में होगा।
वास्तु का स्थान यदि बदल रहा है, चाहे आप बगल की भूमि या मकान ही क्यों न खरीदें, वर्ग दिशा का विचार जरूरी है।
अपनी नाम राशि से वास्तु के नगर/ग्राम की राशि २री, ५वीं, ९वीं, १०वीं या ११वीं होना शुभ होता है।
इसके अतिरिक्त अन्य बहुत-सी पद्धतियां दिशा व स्थान के विचार करने की हैं। धन-ऋण (लाभ-हानि) का विचार भी वास्तु की दिशा व स्थान के नाम से होता है (वग्र-चक्र से)। यदि सब कुछ लिखने लगूं तो ये पहला अध्याय (वास्तु का तीसरा पेज) कभी समाप्त ही न हो। पेशेवर वास्तु शास्त्री के लिए यह सब विचार करना सरल है, क्योंकि उसे अभ्यास है। लेकिन जाल के पाठक गणों के लिए यह सब कष्ट-साध्य और उबाऊ होगा। इसलिए वास्तु विद्या के सभी खंडो (अध्याय) पर संक्षेप्त में ही लिखा जाएगा। अस्तु।
तो सबसे पहले ऊपर दी गई पद्धति से वास्तु के नगर का नाम और दिशा का विचार कर लें। तथा अनुकूल दिशा एवं स्थान में ही वास्तु प्राप्ति का प्रयत्न करें।
यहां जन्म स्थान से तात्पर्य पुश्तैनी घर या जन्म के समय परिवार के रहने का स्थान। हालांकि आजकल लगभग सभी लोग अस्पताल में ही जन्म लेते हैं, लेकिन यहां इस विषय में जन्म स्थान वह माना जाएगा जहां जन्म के तुरन्त बाद जातक का परिवार रह रहा था।
वास्तु के लिए वर्ग विचार में स्थान और जातक के केवल