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केतु ग्रह प्रभाव- व शांति के उपाय

केतु ग्रह प्रभाव- व शांति के उपाय

पश्चिमी देशों में जिसे साउथ नोड के नाम पहचाने जाने वाले छाया ग्रह को वैदिक ज्योतिष में केतु नाम से संबोधित किया जाता है। वैसे तो राहु और केतु भौतिक ग्रह ना होकर महज एक बिंदु मात्र है। लेकिन वैदिक ज्योतिष में इन बिंदुओं को किसी ग्रह के ही समान मान्यता प्राप्त है। केतु किसी भी भौतिक ग्रह की ही तरह मानव जाति को प्रभावित करने की क्षमता रखते है। सामान्य तौर पर केतु को एक पापी ग्रह माना जाता है, यही कारण है कि केतु का नाम आते ही सामान्य मानवी के मान में भय और डर उत्पन्न हो जाता है। शायद ऐसा केतु के गुण, स्वभाव और प्रभावों के कारण हो क्योंकि केतु पुरूष संज्ञक तामसी गुणों वाला ग्रह है। केतु वक्र गति से चलने वाला नीरस ग्रह है। केतु वायु प्रकृति का ग्रह है और श्मषान और घर के कोनों में उसका निवास होता है। केतु आध्यात्मिकता जातक को आध्यात्मिकता की ओर लेकर जाने का कार्य करते है। ताकि जातक आध्यात्म के सहारे अंतिम खुशी अर्थात मोक्ष को प्राप्त कर सकें। 

वहीं कुंडली का दूसरा भाव धन स्थान या कुटुंब स्थान के नाम से जाना जाता है। इसका संबंध धन, चल-अचल संपत्ति, कुटुंब, वाणी, वंश, धन संग्रह, रत्न, लाभ-हानि, महत्वाकांक्षा और विरासत संपत्ति जैसे क्षेत्रों से होता है। जब कुंडली के दूसरे भाव में केतु मौजूद हो तब वह जातक के संवाद कौषल, जनसंचार, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक जीवन को प्रभावित कर सकता है। 

सकारात्मक  प्रभाव 

कुंडली के दूसरे भाव में बैठे केतु जातक को तीष्ण बुद्धि देने का कार्य कर सकता है। ऐसे जातक अपनी बात बहुत ही बेहतर ढंग से लोगों तक पहंुचाने का कार्य करने में सक्षम होते है। उनमें संवाद कौषल की प्रभावी क्षमता होती है और वे विदेषी भाषाओं में पारंगत होने की संभावना भी रखते है। कुंडली के दूसरे भाव में केतु के प्रभाव जातक को भौतिक जीवन के प्रति अधिक आकर्षित करने का कार्य करते है। केतु जातकों को पुस्तक और पत्रिकाओं को एकत्र करने के लिए प्रेरित कर सकता है। ऐसे जातकों की रूचि साहित्य लेखन और लेखांकन के कार्य में भी हो सकती है। केतु जातकों को आध्यात्मिकता की ओर लेकर जा सकता है।

नकारात्मक प्रभाव 

कुंडली के दूसरे भाव में केतु की मौजूदगी जातक के बोलने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। ऐसे जातक हकलाने या वात विकार जैसी समस्याओं से जूझ सकते है या उन्हे नई चीजें सीखने में भी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे जातक दूसरों पर अधिक निर्भर हो सकते है। कुंडली के दूसरे घर में केतु जातक के खर्चों को बढ़ा सकता है। उन्हे आंखों से संबंधित किसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे जातकों में शिष्टाचार और विनम्रता का अभाव हो सकता है। कुंडली के दूसरे स्थान पर केतु जातक को आपसी संबंधों और व्यवहारिक जीवन में लोगों से अलग करने का कार्य कर सकता है। दूसरे घर में केतु जातक को परिवार के सदस्यों से अलग करने का कार्य कर सकता है। ऐसे जातकों को यह महसूस होता है कि परिवार के लोग उनसे दूर है। जातकों को अपने परिवार के साथ संबंध बनाए रखने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे जाताकों को सरकार के नीतियों से भी नुकसान होने की पूरी संभावना होती है। कुंडली के दूसरे स्थान पर केतु जातक को चर्चाओं के बीच वाक्यों को भूलने की समस्याओं का सामना कर सकते हैै। उन्हे किसी संवाद को पूरा करने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। दूसरे स्थान पर केतु जातक को घमंडी और अभिमानी बनाने का कार्य कर सकते है, जो उनके संकट को बढ़ाने का कार्य कर सकता है। सरकार और सरकारी लोगों के साथ संवाद में बहुत सावधानी बरतें अन्यथा आपको बढ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इन सभी समस्याओं के साथ ही केतु जातक को स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी परेषान करने का कार्य कर सकता है। कुंडली के दूसरे घर में केतु जातक को स्टोक और दिल से संबंधित बिमारियां भी दे सकते है। दूसरे स्थान पर केतु जातक को मानसिक रूप से अस्थिर और उत्तेजित भी बना सकते है। 

केतु शांति के उपाय: केतु का अर्थ होता है पूंछ, अतः इसे तर्क, कल्पना और मानसिक गुणों आदि का कारक कहा जाता है | केतु हानिकारक और लाभकारी दोनों ..

  केतु शांति के उपाय

 ज्योतिष शास्त्र में केतु ग्रह को पापी ग्रह मन जाता है | इस ग्रह का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता, इसीलिए यह जिस ग्रह के साथ बैठ जाता हैं, उसी के अनुसार अपना प्रभाव देने लगता हैं | केतु का अर्थ होता है पूंछ, अतः इसे तर्क, कल्पना और मानसिक गुणों आदि का कारक कहा जाता है | केतु हानिकारक और लाभकारी दोनों तरह के प्रभाव देता है एक ओर जहां यह हानि और कष्ट देता है, वहीं दूसरी ओर व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति के शिखर तक लेकर जाता है | केतु ग्रह शांति के लिए अनेक उपाय बताये गये हैं | यदि आप केतु के अशुभ प्रभाव से पीड़ित हैं तो बताए गए “केतु शांति के उपाय” अवश्य करें |

केतु के अशुभ प्रभाव के शमन के लिए भगवान गणपति की उपासना सर्वोत्तम मानी गई है | भगवान गणेश के किसी भी मंत्र के अनुष्ठान से केतु के अशुभ प्रभावों में शांति मिलती है |

किसी व्यक्ति के जन्मांग में कालसर्प योग की दुर्भाग्य कारक स्थिति हो तो उन्हें एक वर्ष में नियमित संकट चतुर्थी के व्रत सहित गणपति मंत्र और अथर्वशीर्ष का जप एवं यथाशक्ति हवन करना चाहिए |

केतु के वैदिक एवं तांत्रिक मंत्र का जाप करें एवं भगवान गणेश के नित्य दर्शन करें |

गणेश द्वादश नाम स्तोत्र का पाठ करने से केतु शांत होता है |

मंदिर के बाहर बैठे हुए भिखारियों को यथाशक्ति दान दें तथा मछलियों एवं चीटियों को आटा खिलाएं |

केतु शांति के लिए दो रंग का कंबल किसी गरीब को दान करें |

पीपल वृक्ष की प्रदक्षिणा करें एवं नाग प्रतिष्ठा भी करें | जो महिलाओं केतु के सप्तम या अष्टम प्रभाव से आक्रांत हैं उन्हें यह अवश्य करना चाहिए |

नीम का एक वृक्ष अपने हाथ से लगाना चाहिए |

केतु द्वादश नाम का नित्य पाठ करते रहना चाहिए |

राहु-केतु के दोष निवारण हेतु सर्पाकृति की चांदी की अंगूठी धारण करना चाहिए |

हाथीदांत से बनी वस्तुओं का व्यवहार या स्नान के जल में डालकर उस जल से स्नान करना चाहिए | इससे केतु के अशुभ प्रभाव में शांति मिलती है |

भगवती छिन्नमस्ता चंडी उपासना सभी दुष्प्रभावों का नाश करती है 

केतु को प्रसन्न करने हेतु लहसुनियायुक्त केतु-यंत्र गले में धारण करें |

दहेज में चारपाई एवं सोने की अंगूठी जरूर लेना |

कपिल गाय का दान देना या सेवा करना | गौशाला में प्रतिदिन गाय को चारा डालना |

तिल, नींबू, केला आदि का दान देना या जल में प्रवाहित करना |

निवार-सुतली (चारपाई बुनने के लिए) पड़ी हो तो चारपाई बुनवा ले या घर से निकाल दें |

काले कुत्ते को भोजन का हिस्सा देना या काला कुत्ता पालना |

दोरंगा होलादरी पत्थर पहनना या हकीक धारण करना |

खटाई वाली चीजें लड़कियों को खिलाना एवं चाल-चलन ठीक रखना |

काले एवं सफेद तिल को जल में प्रवाहित करना |

केतु पीड़ा की विशेष शांति हेतु बला, लाजा, मूसली, नागर मोथा, सरसों, हल्दी एवं लोध मिलाकर आठ मंगलवार तक स्नान करना |

हरिवंश पुराण के अनुसार केतु के दुष्प्रभाव से पीड़ित जातक को कपिलवर्ण गाय का दान करना चाहिए  

“जय केतुदेव”

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