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सबसे खतरनाक गृह होता है – केतु

ज्योतिष में सबसे खतरनाक गृह होता है केतु-

ज्यादातर ज्योतिषी इस गृह को नजरअंदाज करते हे। जिस भाव में बैठ जाए उस भाव के फलो से जातक को दूर कर देता है या फिर इतनी तीव्रता से देता हे कि लेने वाले को समझ में ही नहीं आता की कहा से आया वो चाहे ज्ञान हो या धन।

केतु एक तृप्ति हे संतोष हे ।राहु एक भूख हे तृष्णा हे।जब  जातक पर केतु का शुभ प्रभाव होता है तो जातक सब कुछ पाकर लोगो में लुटा देता है चाहे ज्ञान हो या धन।वैराग्य का कारक भी केतु ही हे।4,8,9,12 भाव में गुरु केतु की युति 4,9,12 राशि में हो जातक इनके दशा काल में संसार से विरक्त होता ही हे।

अगर 4,8,9,12 भाव में शनि केतु की 4,9,12 राशियों में युति हो तो जातक पराविद्याओं द्वारा संसार को जानने की तीव्र अभिलाषा होती है।जो इनके दसा काल में अपना प्रभाव दिखाती ही है।

लग्नस्थ केतु और उसके अन्य ग्रहों से सम्बन्ध।

लग्नस्थ केतु जातक को शंकालु, चिंताग्रस्त व भ्रमित बना देता है। वात व्याधि से भी ऐसे जातक पीड़ित रहते हैं। केतु प्रधान ​जातक जीवन में कोई लक्ष्य या महत्वाकांक्षा नहीं रखते… ‘जैसा चल रहा है, चलने दे’ इस मानसिकता के चलते रेस में सदैव पीछे रहना पसंद करते हैं।ऐसे व्यक्तियों को हँसना-खिलखिलाना पसंद नहीं होता। अति शुभ सूचना भी वे निराश होकर ही देंगे। हाँ सिंह लग्न, मकर या कुंभ में केतु हो तो वैभव,चल-अचलसंपत्ति व पुत्र सुख का कारक बनता है। पर अधिक तर वर्षफल मे आया केतू जोकी लगन का हो अचानक दुर्घटना और बिमारी का योग देता है चोट अकसर कमर व उसके नीचे के हिस्से पर देता है अनियमित कमर दर्द घुटनो का दर्द शरीर मे तपन भी बढाता है मगंल के साथ खराब होने पर पीलिया लीवर पित इनकी समस्या बढा देता तेजी से।

यदि केतु सूर्य के साथ हो तो मन सदैव शंकालु बनाता है, आत्मविश्वास का अभाव देता है। ऐसे जातक को बिना बात शक करने की आदत होती है जिससे वो बुराई ढूढता रहता है सबमे अकसर ऐसे चापलूषो पर अधिक भरोषा करके नुकसान झेलते है ऐसे हालात मे इनके अपने रिश्ते तनाव मे रहते है सातंवे घर की ऐ युति खराब ही रहती है पत्नी पति के बीच छोटी बात शक पर आपसी तालमेल खतम कर जाती है।*

 

चंद्र-केतु युति पानी से भय व जीवन में संघर्ष दिखाती है। ऐसा जातक मानसिक तौर चितितं रहता है ऐसा जातक एक काम के लिए दस रास्ते प्लान करता है पर होता नी ऊपर से कुछ बोलने करने मे डर आगे आता है ऐसा जातक भगवान के मंदिर जाकर अधिक शिकायत करता रहता है मतलब खुद मे बडबडाता रहता है और रोता रहता है । अपनी भावनाये जाहिर नही कर पाता जिससे उदास रहता है बच्चे ऐसे मे गुमसुम और चिडचिडे रहे है।

मंगल-केतु युति होने पर व्यक्ति जीवन में कोई रस नहीं लेता डर डर के जीता है या फिर औरो को मार कर जीता है उसमे दिमागी ताकत से अधिक शरीर की ताकत होती है पर वो उसका इस्माल सही जगह करे सभंव नही ।

बुध-केतु युति -जातक को बोलने और सुनने की क्षमता खराब रहती है खासतर कान के रोग पैदा हो जाते है सुर्य भी नीच का हो तो न सुन सकेगा न बोल सकेगा पर दिखने मे अच्छा होता है । ऐसे लोगो को मुहं का कैसंर भी हो जाता उनके दातं समय से पहले झडने व कमजोर होने लगते है यदि जन्म से पूव माता के ये योग हो तो बच्चे जीभ छोटी होती है देर से बोलना अटक अटक कर बोलना तुतलाना या फिर बोल नही पाना ऐ पाया जाता है । एक बात और ऐसे लोगो को धोखा हर चीज मे मिलता है और झूठे आरोप झेलते है।

गुरु-केतु युति प्रतियुति आध्यात्म में रुचि देती है व सिद्धि मार्ग का रास्ता दिखाती है। केतु शुभ दृष्टि में हो तो जातक आध्यात्म-उपासना का मार्ग चुनता है व ईश्वर कृपा का भागी बनता है। बुध के साथ होने पर व्यक्ति मितभाषी होता है। पर तब इनमे आपस मे बनती नही एक फल देगा एक नही जिससे आदमी अपनी भावनाओ और आमदनी के लिए कनफ्यूज रहता है ऐसे जातक को धन सचंय करने मे परेशानी रहती है और अशुभता मे हालाद इतने दुख दायी दे बैठता है की उसको घर पालने के लिए एक एक रू का मोहताज बना देता है।

शुक्र और केतू –आज एक बिमारी सबसे अधिक होती मधुमेह यानी शुगर शुक्र के साथ केतू की यति इस रोग से पिडित करती है क्यूकि मगंल यहा कमजोर हो जाता है वही यदि सुर्य शुक्र की युति चौथे घर मे हो तो माता को सातवे मे हो तो स्वयं को या पत्नी को तीसरे हो तो भाई को शुगर जरूर देगा यदि सुर्य शुक्र साथ हो तो और पती दिन मे सेक्सुअल रिलेशन बनाता है यानी जबतक सुर्य उदय हो तो पत्नी बिमार ही रहती है । वही शुक्र केतू की युति शरीर को बिमारी से लडने की ताकत कम कर देता है बिना केतू की खराबी के शुक्र शुगर रोग नही देता चाहे वो साथ हो या नही । पत्नी बिमार रहती है शादी देर से होती है फिर होती है तो सुख नही होता । सबसे बडी बात औलाद सुख देर से या नही देता ।

गुरू केतू एक साथ होने पर कभी कभी अपने फल नही देते तब जातक राहु प्रबल रहने लगता है न नीदं न चैन एक तरफ बिमारी दूसरी तरफ काम एक दम ठप यहाँ एक बात और है की केतू की अधिक खराबी जादू टोना ऊपरी हवा इस तरह के वारदाते होनी लगती है । जहा अच्छा केतू धर्मगुरू बनाता है ज्योतिषी राजनेता बनाता है लोग पीछे पीछे चलते है वही खराब केतू जातक को उल्टा भटकाव देता है तात्रिंक ओजाओ डाॅक्टर के पीछे भागते फिरते है बिमार होता है तो पता नी लगता है क्या आ तीन तीन बिमारी एक रिर्पोट आ जाती है ऐसे जातक अचानक रोने लगता है । केतू जब भी लगन मे आता है और अशुभ हो तो वाहन से और नजर दोष से चोट अधिक देता है लगन मगंल का और सुर्य का होता है यदि मगंल वर्षफल मे छठे आठवे मे आऐ और केतू लगन मे तो पूरे वर्षफल मे इतनी चोट बिमारी सामने आ जाती है की उसका धन डाॅक्टरो मे जाता रहता पर फर्क नी आता काम धीरे धीरे खतम होता जाता है कर्ज पे कर्ज चलेगा पर नतीजा जीरो।

शनी–केतू —इन दोनो की युति जातक कर्म के लिए और अधिकार के लिए लडना सिखाती है ऐसे जातक अपना हक न मरने देते है न मारते है इनकी हर एक बात पर विशेष चीज आती है जिसका अहम हिस्सा होता है ऐ लोग काम तो कैसा भी हो कर जाते पर पढाई नही करते ऐ अकसर झगडे करने और चोटे खाने मशहूर ही रहते है मरने मारने से नही डरते इसलिए ऐ दूसरो की वजह से फसंते जल्दी दिमाग वाले लोग इनकी ताकत का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते है इसलिए झूठे केसो मे फंस भी जाते है ।

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