उत्तर पूर्व के वास्तु देवता यहां पर शिखी हैं जिनका तत्त्व अग्नि है। इसी को भगवा शिव की तीसरी आँख भी कहा जाता है। यहां घर या भवन का पूर्व दिशा की और पहला द्वार भी होता है। मन के सब विचार, नए भाव तथा समझ यहीं पर पैदा होते हैं
किसी भी कार्य के लिए 3 सवालो का जबाब होना चाहिए,
लक्ष्य क्या है ?
लक्ष्य को प्राप्त करने किन रास्ते / माध्यम की आवश्यकता है ?
रास्ते / माध्यम के जरिये लक्ष्य का पूर्ण होना ?
जैसे जब शादी की बात हो तो दूल्हा या दुल्हन ही लक्ष्य होता है , और गोरा / काला , पढ़ाई , कमाई पारिवारिक स्थिति , नाम इत्यादि लक्ष्य के पैरामीटर होते है ।
जब घर का ईशान कोण वास्तुदोष रहित होता है तो ही हमे कोई वस्तु / व्यक्ति कैसा चाहिए ? क्या क्या गुण होना चाहिए ? जैसे सवालो का जबाब अपने लेवल के अनुसार हम देते है , नहीं तो हम स्वयं – होते कुछ है खोजते कुछ है ।
इसके लिए [#शिखी] वास्तु देवता और ईशान कोण का बैलेस होना आवस्यक है।
पित्रों के आशीर्वाद से ही वंश बृद्धि होती है, हमारा संबंध अपने बराबर (सामाजिक , पारिवारिक , आर्थिक) के लोगो के साथ होता है , अगर पित्र वास्तु देवता का आशीर्वाद अर्थात इम्बैलेंस होते है तो बच्चे शादी के लिए तैयार ही नहीं होते । इशके लिए [#नैरुत्य] और [#पित्र] देवता में वास्तु दोष नहीं होना चाहिए ।
रिश्ते बिना किसी भी माध्यम के नहीं होते उसके लिए [#पूर्व] दिशा और [#आर्यमा] का सही होना आवश्यक है । बिना सही मिडिएटर के सही रिश्ते नहीं मिलते।
किसी भी मंगल कार्य के लिए अग्नि देव का भी आशीर्वाद आवश्यक होता है , उसके लिए , आग्नेय दिशा का बैलेंस होना और [#पुष्य] वास्तु देवता का मुख्य ज़िम्मेदारी होती है । यहाँ पे होने दिक्कत से बात बन बन के बिगड़ जाती है, चाहे वो डिमांड हो कुछ भी ।