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साधना ,उपासना ,आराधना ,प्रार्थना और पूजा में क्या अंतर है ?

सिद्धि ,साधना और सिद्ध साधक में क्या अंतर है ?

हमारा यह लेख अनेक मिथक तोड़ने वाला है ,आपके भ्रम को मिटाने वाला है ,इसे बहुत गंभीरता से देखें और समझें कहीं आप भी इनमे ही तो नहीं फंसे हैं |आप लोगों में से बहुत से लोग रोज ही पूजा ,प्रार्थना ,आराधना ,उपासना ,भक्ति और साधना करते हैं किन्तु अधिकतर को इनके बीच का अंतर ही नहीं पता होता |कुछ लोग रोज की पूजा को साधना समझ लेते हैं तो कुछ लोग भक्ति को साधना मान लेते हैं ,कुछ लोग प्रार्थना करते हुए साधक समझ लेते हैं खुद को तो कुछ लोग वास्तव में साधना करते हैं |पूजा ,प्रार्थना ,आराधना ,उपासना और साधना में भारी अंतर होता है इसी तरह सिद्धि ,साधना और सिद्ध व्यक्ति में बड़ा अंतर होता है |हर मंत्र जप करने वाला साधक नहीं होता ,हर साधक सिद्ध नहीं होता और हर मंत्र जप करने वाले को सिद्धि नहीं मिलती |जिसे सिद्धि मिली वह साधक हो जरुरी नहीं या जिसे सिद्धि मिली वह भी सिद्ध हो गया बिलकुल भी जरुरी नहीं |in बातों को सामान्य व्यक्ति तो नहीं ही समझता बड़े बड़े मान्त्रिक ,तांत्रिक और साधना जगत से जुड़े लोग या पंडित भी नहीं समझते |बिना इन्हें जाने समझे आप बड़े भ्रम में रहते हैं |

                सबसे पहले तो आप पूजा को समझिये |पूजा वह प्रक्रिया है जिसमे किसी भी देवी देवता को उसकी ऊर्जा के अनुकूल पदार्थों के साथ पूजन करते हुए उसको उर्जा दी जाती है अर्थात प्रसन्न करने की कोशिश होती है ताकि उसकी ऊर्जा से आपको लाभ हो सके |इसमें अक्षत अथवा तिल ,जल ,विशेष फूल ,विशेष फल ,विशेष नैवेद्य अर्पित किये जाते हैं ताकि उसकी उर्जा के अनुकूल पदार्थो से उसकी उर्जा बढे ,उस स्थान पर उर्जा उत्पन्न हो ,उस उर्जा से आपको लाभ हो |पूजा पदार्थों के साथ दैवीय उपचार है |अब प्रार्थना को समझते हैं |प्रार्थना वह प्रक्रिया है जिसमे आप अपने ह्रदय और भाव से ,अपनी भाषा में किसी दैवीय शक्ति से अपनी इच्छा और मनोकामना कहते हैं |यहाँ भाव ,श्रद्धा ,आतंरिक जुड़ाव और तन्मयता मुख्या शक्ति होती है जो ला आफ अट्रेक्शन की तरह दैवीय शक्ति को आकर्षित करती है |

                    तीसरी प्रक्रिया अध्यात्म जगत में दैवीय कृपा पाने की उपासना होती है |उपासना में आप किसी भी शक्ति के स्तोत्र ,कवच ,सहस्त्रनाम ,ह्रदय आदि का पाठ करते हैं |इसमें पूजा सम्मिलित होती है और संकल्प आवश्यक अंग हो जाता है |इस प्रक्रिया में आप देवता से सुरक्षा के साथ उसकी विभिन्न नामों ,गुणों ,बीजों के साथ प्रशंशा करते हुए मनोकामना पूर्ती की इच्छा व्यक्त करते हैं |चौथी क्रिया दैवीय कृपा पाने की आराधना होती है |आराधना ,प्रार्थना के बाद सबसे सरलतम क्रिया है |पूजा ,उपासना और साधना में मार्गदर्शन की जरुरत होती है किन्तु प्रार्थना और आराधना में विशिष्ट मार्गदर्शन जरुरी नहीं होता |आराधना में देवी -देवता के भजन ,चालीसा पाठ आदि आते हैं जो भी सरलतम रूप से किये जा सकें और जिनमे बीज मंत्र ,शपथ आदि न हों |आराधना में स्वरुप ,कार्य और गुणों का बखान करते हुए देवता से अपने ऊपर कृपा करने की कामना व्यक्त की जाती है |इसकी मुख्या शक्ति भक्ति और श्रद्धा होती है |

                 दैवीय शक्ति की कृपा पाने का सबसे शक्तिशाली माध्यम साधना है किन्तु अधिकतर को तो यही नहीं पता होता की वास्तव में साधना कहते किसको हैं |लोग कहते हैं की वह अमुक शक्ति को ,अमुक देवता को साध रहे ,उनकी साधना कर रहे |आप अपने घर में किसी को तो साध ही नहीं पाते की वह आपकी हर बात मान ही ले ,आप देवी देवता को क्या साधोगे |एक सबसे छोटी शक्ति भूत तो सिद्ध करने में कई महीने लग जाते हैं वह भी आप उसे साधते नहीं ,उसे वचन बढ करते हैं पहले प्रसन्न करने के बाद |देवी देवता को साधना आसान नहीं |ऐसा नहीं की कोई देवी देवता को साध नहीं सकता पर वह स्थिति बहुत बाद में आती है |पहले तो साधना उसे ही कहा जाता है जब खुद को साधा जाता है ताकि कोई देवी देवता आपसे जुड़े |अर्थात खुद को ऐसा बनाया जाता है की कोई शक्ति आपको अनुकूल पाकर आपसे जुड़े |इसे ही साधना कहते हैं |मतलब आप खुद को साधते हैं विशेष देवी देवता के अनुकूल खुद को बनाकर |वैसे तो देवी देवताओं के भी कई स्तर होते हैं जो उनकी शक्ति और उर्जा के आधार पर बने हैं जिनमे कुछ को उच्च स्तर के साधक साध लेते हैं किन्तु सामान्यतया जिसे कहते हैं की देवी देवता को साध रहे वह वास्तव में देवी देवी को न साध उनकी उर्जा का नियंत्रण होता है अपने उद्देश्य के अनुसार |उसी देवता को उसी समय कोई और भी साध रहा हो सकता है ,तो मतलब हैं एक ही देवता की उर्जा को कई लोग सिद्ध कर सकते हैं अर्थात देवता को नहीं साधा जाता ,सामान्यतया उनकी उर्जा के एक छोटे अंश को साधा जाता है अपने को उसके अनुकूल कर |

                 अब आप पूजा ,प्रार्थना ,आराधना ,उपासना और साधना का अर्थ समझ गए होंगे |अब हम आपको सिद्ध ,सिद्धि और साधक में अंतर भी बता देते हैं |जो व्यक्ति किसी भी प्रकार से स्वयं को किसी भी शक्ति या ऊर्जा के अनुकूल बनाकर उसे अपने से जोड़ने का प्रयास करता है उसे साधक कहते हैं अर्थात वह साधना कर रहा की कोई शक्ति उससे जुड़े |यह साधक जब उस शक्ति को खुद से जोड़ लेता है अर्थात जब वह शक्ति उस साधक के अनुसार क्रिया करने लगती है तब वह उस साधक की सिद्धि हो जाती है |जिसके पास कई प्रकार की सिद्धि होती है उस साधक को सिद्ध कहते हैं |पुजारी ,कर्मकांडी ,प्रवचन कर्ता आदि अक्सर एक विशेष कर्म करने वाले होते हैं साधक नहीं जबकि सन्यासी ,विरक्त ,बैरागी ,साधू आदि मानसिक अवस्थाएं हैं जिनमे भावानुसार शक्ति हो सकती है |इन विषयों को हम किसी और लेख में समझेंगे 

अज्ञात लेखक का आभार 

यह लेख WhatsApp के माध्यम से मिला 

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